म्हैं दबा'र अेक किणसारा मांय

दाट दी अंतै री पीड़ावां।

म्हैं ढळतोड़ै आंख्यां रै पाणी नै,

किड़किड़ियां पीस'र रोक लीनौ।

पीड़ रा घाव कोनी भरीजै

लोक री कूड़ी अर फोगट री

दिलासा सूं,

कै जीवणरा अबखा दिनां मांय

रहणौ पड़सी अेकलौ,

उथळाव कर दियौ म्हें डांडी रौ,

मिनखां सूं नातै रौ पल्लौ बाढ़'र

म्हैं बणाया हां नूवां मीत,

जिकौ सांभळसी म्हारी बातां,

जिकौ देवसी नेह रा हूंकारा,

जिकौ म्हारै माथै पर धरसी

ऊंडी आसीसां रा हाथ,

वा नूंवा मीत है-

गूड़ा अर हरिया झाड़,

लांबा डूंगर अर चितरयोड़ौ आभौ,

सूनी अर डीगी थळियां,

खळहळ करती नदी री राग,

तपतै तावड़ियै माय

हालरियौ गावतौ बायरियौ।

स्रोत
  • पोथी : डांडी रौ उथळाव ,
  • सिरजक : तेजस मुंगेरिया ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन
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