1

गिण-गिण कर नौ महीना काट्या
बेटे तणी अडीक
पत्थर पड़्यो जनमगी छोरी
उठी कालजे-डीक —

दडूक्यो डाकी दायजो

2

गोठां उड़े, बधायां बँटे
बेटे रा वड को
बेटी जायां बल-जल सूके
भींत-भचेड़े-भोड —
भंवावे डाकी दायजो

3

मायत एक, एक ही माटी
निपजी एकण खाण
बेटे-बेटी रे उच्छब में
फर्क जमी-असमान —
घलावे डाकी दायजो

4

टाबर रमें अचपला अळिया
छोरा करे कुचाल
आंख मूंद कर मायन झिडकै
हू बेटी पर लाल —
डिगावे डाकी दायजो

5

लड़े-बिछडे छो'रा छींडा
छो’री ऊपर भार
रोवे, ठिणके टाबर कोई
तो बाई खाबे मार —
पिटावे डाकी दायजो

6

ठाली-भूली, कह-ठिठकारी,
नीः नीः थोक सुणाय
मार-पीट कर करे आरती,
बेटी जायी माय —
डुबोवे डाकी दायजो

7

कड़के-बड़के झटका मारे
बाप साप बणजाय
जायोड़ी रे बटका-बोड़े
बेटी बोले हाय —
हाय रे डाकी दायजो

8

सगला छो’रा बैठ भणीजे
मायत रे दरबार
बेटी बैठी पोठा थापे
बिना मान मनवार —
झुरावे डाकी दायजो

9

किणरे दर्द, पीड़ कुण जाणे
मायत सोचे बात
बेटी बड़ी, पास नहीं कोडो,
करणा पीला हाथ —
सतावे डाकी दायजो

10

बिलखी माय, बाप दुख पावे,
बीर उणसुणी जाय
मोटो टाबर घर नहीं मावे;
करणो किसो उपाय —
जळावे डाकी दायजो

11

कूं कूं–वरणी देह नवलखी
गवरल रे उणियार
टड्डां बिना, टकेरी कोनी,
धिक-धिक रे संसार
सार बस, मोटो दायजो

12

न्हासा-दौड़ी कर-कर हार् ‌यो
तो भी पड़ी न पार
मिनख पणेरे मे’ल मूंगियो
आयो बाप बजार —
डरावे डाकी दायजो

23

जायोड़ी रो हाथ पकड़ कर
लायो, बोल्यो बोल
जोड़ी बाल बताओ कोई
‘रुपया लो जी खोल’
खोल लो मोटो दायजो

14

माल देख लेवाळ लटूंब्या
गर-फर करे दलाल
‘चौके ऊपर चार बिदियां’
बोल! बोला! देवाल।
झुकावे डाकी दायजो

15

सस्ती माल झले नहीं झाल्यो,
मन्दी बहे करूर
बेटी खातर घर-वित्त बेच्यो,
लीन्हो, पल्लो-पूर —
सजायो मोटो दायजो

16

बेटी लारे बिक्यो आप खुद-
और बिकी सब चीज
हुर्रे-फुर्रे हुई सगा मे
सुख सपन पर बीज-
पटकग्यो डाकी दायजो

17

घर छुट्यो परिवार छुटग्यो
छुटी परणी नार
पर खएडां में डबकण लागो
जाय समदरा पार —
पारधी डाकी दायजो

18

घरवाळी चिता में रोवे,
पड़ियो बड़ो बिजोग
सूरत रा सपनां में सॉसॉ
हाथ तग, तन रोग —
रगां में डाकी दायजो

19

रो रो करके आंख्यां सूजी,
माथो करे बटीड़
सोच, फिकर में पींजर सूक्यो,
रूं-रूं रमगी पीड़ —
फिड़ावे डाकी दायजो

20

ऊठ सवेरे गाल्यां देवे,
ओ भोला-भगवान।
इण जीणे सूं मरणो आछो,
काढ़ पिण्ड सूं प्राण —
डसे ओ डाकी दायजो

21

बेट्यां घणी, पास नहीं धेलो,
टेम-टळे नहीं सां’झ
तूटे नहीं आंख रो आंसू
राम न राखी बॉझ —
तळे ओ डाकी दायजो

22 

कदे न बांधी लूमा-झूमा
कदे न पेरी घेर 
बेटी साथे बाळण्जोगो 
लेगो सब बटोर —
खोजग्यो डाकी दायजो 

23

सोचे सेठ, कमाई थोड़ी
टेक्स लागे अपार
लारे बो'रा चोटी-ताणे
किण विध जावे पार—
पिदावे डाकी दायजो

24

घर रो कागद बाच चमकियो,
‘खरचण नहीं छदान’
बो-रां वह-वह डांडी घाली
‘खायो पियो हराम’—
करावे डाकी दायजो

25

बेटी लिखे, परण-घर-आई,
सासू करे मखौळ
नित्त कहे, कम मिल्यो दायजो,
गिण गिण बोले बोल-
अधूरो दीन्हो दायजो

26

पीहरिये रा रूंख भूलगी,
थे, नां, ली, वळफेड़
सगळो घर रा मौसा मारे
बिन मतलब ले छेड़ —
राड़ रो कारण दायजो

27

रुकनां बढ़ी, खुटग्या रुपया,

किण विध होए निभाव
कच्ची नींद रात री पालां
पड़्यो काळजे घाव—
घाव में घोबो दायजो  

28

काल-बर्ष  में इधक मास है
तिगरी देवे त्रास
सबकुछ छोड़ मौत-मुख आयो
तो भी ऊणी-आस —
आस रो कारण दायजो

29

सत-मत री सत्ता ने भुल्यो,
तूट्यो सब आधार
झूठा लौट लडावण लागो
धोले-दिन-दोफार —
निजर में अडियो दायजो

30

करे कतल, कानूनां तोड,
वणे कागजी शाह
झूठो साचो दान दिखा कर
लूटे सस्ती वाह —
वाहरे डाकी दायजो

31

चूसे खून, मिनखरो मूंघो,
चाले कलम-कठोर
देश-धर्म री इज्जत बेचे
रूप बदल कर चोर —
चोर में बैठो दायजो

32

घूंस खवाई, लूट मचाई
वण्यो जींवतो भूत
आई पुलिस, पकड़ कर लेगी,
घणा जमाया जूत —
फसावे डाकी दायजो

33

बिकगी भौम, कर्ज सिर ऊपर,
माल विराणे हाथ
काळ-कोठरी, मार अनोखी,
वैरण काळी रात —
ढरावे डाकी दायजो

34

माल जब्त, खुद पड़्यो कैद में
घर रूपबां री नार
तन, मन, धर्म और धन खोयो;
तल्लड़ पड़्या हजार —
हार रो कारण दायजो


35

जवा, चींचड़ा, माच्ळर खावे,
हुवे हाल-बेहाल
यार, दोस्त, घर बाला आधा,
पूछे कुण चल-चाल —
चाल-चुकावे दाजयो

36

भैड़ी वगत, हाल सब थाका,
सुमर् ‌यो वेली राम
सत मत राख सांवरा अबके
लुळ-लुळ कियो प्रणाम —
रुलावे डाकी दायजो

37

साचे मन सूं नाम लियोड़ो
कदै न अह्ळो जाय
‘कटूगी जेळ, जीव ले भागो,
जूत्यां हाथ उठाय’ —
भगावे डाकी दायजो

38

पड़तो, गुड़तो, धोती-लोटो
ले पूगो घर थेट
चिन्ता कर-कर वण्यो दूबळो,
पतलो पड़ग्यो पेट —
फेट में लायो दायजो

39

घरवाळां री दशा देख कर,
पड्यो तड़ाछी  खार
ओय राम जी। पार लँघाई॥
नाव पड़ी मँझधार —
डुबोवे डाकी दायजो


40

चेतो हुयो, मिल्यो सगला सूं
कर घर-बित  री बात 
गिण कर गाठ बांधली पल्ले
मोटो है  उत्पात  —
जबर ओ डाकी दायजो

41

औसर-मौसर और खरचणा-
सब रो ओ सिरदार
जन-समाज ने चेटे-खावै,
लेवे नहीं डकार —
मार कर डाकी दायजो

42

मिनख पणे रो मजो गमायो,
जाण्यों नहीं सवाद
न्यात-पांत री रुकनां राखी,
तन, मन कर बरबाद —
ताक में डाकी दायजो

43

कुल ने किचर, तोड़ मर्यादा,
लांपो दियो लगाय
किण विध रुके, काळजो काढ़े,
ऊँठां चढ़-चढ़ खाय —
हाय ओ डाकी दायजो

44

भण्यां गुण्यां संग बात  बिचारी,
चर्चा चली चड़ूड़
मिनख जूण लेकर किण जोगा,
मिल्यो माजणो धूड़ —
‘हटेनी डाकी दायजो?’

45

सोच समझ कर बात विचारो,
बोल्या एकण राय
‘डाकी-चालो मेट्यां सरसी,
लगी कुजागा लाय’—
लायणो मोटो दायजो

46

कुओ, खाड कर, मरे डाबड्या,
छोरां पडे कुपन्य
कार-वार भी टीलो पडग्यो,
राखण में नहीं तंत  —
मिटाओ मोटो दायजो

47

मिनखाचार रह्यो नहीं जग में 
टाबर हुवे लिलाम
लोग हसे, अपणो घर छीजे,
वणे अपूठो राम —
दुखां रो कारण दायजो

48

नेम-धर्म रहणो, ज्यू रहसी,
ठेकेरो के काम
बेजा रीत, बगत ने देखो,
औपत नहीं छदाम —
निभे नी मोटो दायजो

49

आज अभी सूं बन्द दायजो,
बोलो सारे साथ
जिण-जिण ने मंजूर नहीं है,
जका उठावो हाथ
हटाओ मोटो दायजो

50

एके साथे घोष उपाड़ी
बन्द-दायजो बन्द
पण मोटॉ बेटॉ रा मायत,
बोल्या अपणो छन्द —
‘बन्द है देणो दायजो’

51

‘देणे साथे, बन्द लेवणो’
कुछ बोल्या पाबन्द
गरम-नरम बातां रो हाको,
गड़ बड़ छन्द गपन्द —
फूट रो कारण दायजो

53

खाटा-मीठा हू कर बैठा,
पाछा राणो-राण
बे मतलब क्यूं भरो चठिया,
बोल्यो झट अगवान —
मिटाओ मोटो ढायजो

54

लागे लवे, बात सच जचती’
श्री गणेश में फांट
पहले पहल शीश कुण उँचे,
बदनामी रो माट —
मर्म रो मारण दायजो

55

आगे माथे बात टाळ कर,
उठिया पंच तमाम
डाकी दायजिये सूं डरतां,
पंचां लयो न नाम —
दड़ूक्यो डाकी दायजो

46

पढ़ी लिखी हुशियार डावड़्यां,
बैठ बिचारी बात
बिना मौत बहनां आपांरी,
मरे करे अपघात —
हटे नी इण विध दायजो

57

पराधीन जूती री जागा,
भूण्डो अपणो भाग
आभे-नाखी जमी न झाली,
मरी न खाधो नाग —
विपत में बैरी दायजो


60

‘तो सगली बहनां जो बैठी,
पण कर लो बल-धार
बिना-दायजे जो परणीजे,
वो, सज्जन भरतारं —
न ले, दे, बिलकुल दायजो


61

जो घर वाला इज्जत खातर,
अणख करे बदनाम
तो घर-घर में अलख जगाकर,
करो आपणो काम —
सीख दो छोड़ो दायजो

62

जद बहनां “गुणवन्ती” हूसी
शिक्षा आछी पाय 
तो अळवळइया वर, वनड़्यां हित,
नित उठ-आवे –जावे —
छोड़ कर आघो दायजो

63

करो प्रचार छोड़ आलस ने,
घर-बाहर-दरबार
सब बहनां ने पाठ-पढ़ात्रो,
वणो आप मुख्त्यार —
हुवेला जद-तद फायदो

66

हुई सगायां छोड डावड़घा,
हिम्मत सूं पण-धार
दायजिये रो बाळ पूतळो,
करण लगी परचार —
ठिकाणे लागो दायजो

67

लिखिया पढ़िया चोखा टाबर,
धनपतियां रां पूत
फिरे कुंवारा गोता-खाता,
कुण परणीजे नूंत —
बनी सूं वालो दायजो

68

मोटोड़ां री मूंछ खूशगी,
गयो समूचो नाक
भूखा-कूके बीच-बिचौला,
फूटी चहुँदिश हाक —
मिले नहीं घेलो दायजो

69

लड़क्यां रे एके सूं टूटा,
टणकोड़ां रा सींग
(कोई) भूल-चूक उण दिश नहीं जावे,
लेवण सारू हींग —
मान-मथ-मरियो दायजो

70

शिक्षा रे बल सभी सुधरे,
मिटे बुरा अहनाण
डावड़ियां मिल-जुल दुख मेट्यो,
अपणे बल रे नाण —
भगायो इण विध दायजो

71

धीरे धीरे सब विध बेठी,
नहीं मोल रो काम
जथा-जोग सम्बन्ध हुवे से,
ना कोई लेवे छाम —
हुयो घर घर में फायदां

72

छोटा मोटा सारा औगुण,
दायजिये रे लार
एक एक लुक-छिपकर न्हाटा,
जातां लगी न वार —

73

हेत-प्रीत अणरीत-जीतरा,
गहरा-गीत-गवाय
गयो दायजो, खोखा-खातो,
धूम तावड़े मांय

74

बल, बुद्धि, हिम्मत रे साथे,
करे ऊंघ तज काम
हाथो हाथ मिले फळ मीठो,
हुवे जगत में नाम

75

इण-विध सारा दोष मिटाओ,
मन में धर कड़पाण
धर्म बधै हित हुवै देश रो,
मिले अजब औसाण

स्रोत
  • पोथी : गुणवन्ती ,
  • सिरजक : कान्ह महर्षि
जुड़्योड़ा विसै