दीवट जळा, दिवाळी हंसती आवैली।

गळी-गळी घर आंगणियां दीपावैली॥

पण दिवाळी री मावस तो उजियाळी व्है।

देखी वेळा हर माह अमावस काळी व्है॥

धरती री हरियाळी सूं सावण कोनी व्है।

सावण तो जद व्है, हीवड़ै मां हरियाळी व्है॥

घरां गोरड़ी मांडणियां मंडवावैली।

दरवाजा माथै चीड़ी-मोर बिठावैली॥

ज्यादा अर कम तो व्है ढळली-वळती छायां।

सुख अर दुख सहवै धन-धन है वाही काया।

दिवाळी रो त्युंहार हैंग नै कैव्है है।

कै दिवटिया रै तळै अंधेरो रैव्है है॥

घर धणियाणी गोवरधन पूजावैली।

हींड ऊगेर ग्वाळणी गाय सजावैली॥

हिम्मत रो कर तेल आस री ले बाती।

हिवड़ै रो दीवटियो थूं वरो संजो साथी॥

आळस अर घोर निरासा री छायां घटसी।

अर अंधियारो काळ दुकाळा रो हटसी॥

टाबर टोळी भी नाच'र हरणी गावैली।

छम-छम कर लछमी घूंघरिया घमकावैली॥

स्रोत
  • पोथी : आखर मंडिया मांडणा ,
  • सिरजक : फतहलाल गुर्जर ‘अनोखा’ ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भासा, साहित्य अर संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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