बीजळी रो खटको

अकड़’र लट्टू ने कह्यो—

म्हारे चालबा सूं ही

थारें उजास भरे है।

अतरा

झपाकेक बीजळी फिरगी

अर् खटका री जीभ

लटक्योड़ी ही रैगी..।

स्रोत
  • पोथी : अणकही ,
  • सिरजक : कैलाश मण्डेला ,
  • प्रकाशक : यतीन्द्र साहित्य सदन (भीलवाड़ा) ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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