बैठ बात करां

हां,

थूं सोचती हुसी स्यात

कै रोज तो

करां हां बात

पण म्हैं सोचूं-

इत्ता दिन तो

अंधारो ढोयौ है

बात कठै करी

थूक बिलोयौ है

म्हनैं लागै-

पाणी पर

फूसकै ज्यूं

सरकती रैयी लारै

बखत पर तिरती

बा बात

अर आपां

पींवता रैया

नीतरेड़ौ बखत

दिन-रात

आ, बातां रा

नुंवां बारणा खोलां

होठां रा किवाड़

मूंद बावळी!

काळजै सूं बोलां

जठै सामट्यौ पड़्यौ है

सो कीं

ढाई आखरां

बैठ

बात करां।

स्रोत
  • पोथी : आ बैठ बात करां ,
  • सिरजक : रामस्वरूप किसान ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन, जयपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
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