पर मुलकां सूं चाल जका नर, धरती रै माथे चढ आवै।

अपणी, धरती माथ रेवणियां, समाज मांय आतंक मचावै।।

अै दोनू दुख देय प्रजा नै, दादा बणनै अकज सतावै।

घणौ जरूरी होय उणांनै, बणै देवता सबक सिखावै।।

दांणव वृत्तियां जदै धरा पर, आवै बणनै आंधी काळी।

देव करै धरती रखवाळी।।

प्रमाद नहीं जिकण मन मांही, आळस दिल में नहीं भर्‌योड़ौ।

प्रबळ हूंस बा रक्षण आळी, हियै मांय बो ज्वार भर्‌योड़ौ।।

अेड़ै पुरखां नै वेदां में, देवां री संज्ञा दे दीन्‍ही।

अै देव बगत रै माथै, मातभोम री रक्‍सा कीन्ही।।

काळरूप जो विपदा आई, अै सगळी विपदावां टाळी।

देव करै धरती रखवाळी।।

देस रखणियौ सासक जबरौ, भलांय नागरिक होय अराड़ौ।

देवत री स्रेणी में आवै, जुगां मिनख गावै परवाड़ौ।।

करतब आळा काम पड़ै जद, अे देवत नी सरकै पूठा।

पातक पाय पतन पधरावै, कमतर आं रा घणां अनूठा।।

अेड़ै देवां पांण देखलौ, लाधै घर घर मांय दिवाळी।

देव करै धरती रखवाळी।।

जिकण देस रा जबर रुखाळा, बोई देस मधुर फळ पावै।

जीवण बणै सरस मंगळमय, सुख कल्यांण घर बैठां आवे।।

चीजां सगळी जकी मिनख री, जिनगांणी नै सफल बणावै।

मधुर नांव रौ ओई मतलब, वेद मांय बो मधुर कहावै।

प्रगट रुखाळा होवै दुख में, जाणै काढे सूर उगाळी।

देव करै धरती रखवाळी।।

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत ,
  • सिरजक : अस्तअली खां मलकाण ,
  • संपादक : डॉ. भगवतीलाल व्यास ,
  • प्रकाशक : राजस्थान साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर
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