बीत्यै जुग री बात आज धोरां री धरती बोलै

ईं री गोदी में बैंती ही कळ-कळ करती नदियां,

हर्‌या खेतड़ां में लहराती बै हीरां री लड़ियां,

था गणतंतर राज, अठै ही अमर पूत बै पळिया।

गौरव रो इतिहास दब्योड़ो आज आपरो खोलै

बीत्यै जुग री बात...

ईं धरती रा जाया हिल-मिल गीत हेत रा गाया,

देशड़लै री आण-बाण रा गिण-गिण पाठ पढाया,

सींच ज्ञान रो तेल, त्याग अर तप रा दिया जगाया

बीं धरती पर आज चानणो टिमटिम करतो डोलै।

बीत्यै जुग री बात...

ईं टीबां में ही रळियोड़ी बै बात्यां सरसाणी,

आभै में गूंजै आंपारै बीं पूरखा री बाणी,

जगमग करती रीत-नीत नै फेरूं पाछी लांणी,

आज आपणी ताकत नै, ले धरा ताकड़ी तोलै

बीत्यै जुग री बात...

जुग बीत्यो, अब आंध्यां बाजै धरती आज बळ्योड़ी,

बण भागीरथ गंगा लाओ बा पाताळ ग्योड़ी,

फेरूं पुन्य धरा नै कर दो सत् साहित्य सज्योड़ी,

‘हरी हुवैली मरू मां तूं’ थारा सपूत सै बोलै

बीतै जुग री बात आज धोरां री धरती बोलै।

स्रोत
  • पोथी : अधूरे गीत ,
  • सिरजक : हरीश भादानी ,
  • प्रकाशक : राजस्थान पुस्तक गृह, बीकानेर
जुड़्योड़ा विसै