म्हे सिकायत नीं कर सकां

म्हे ठालाभूला भी नीं हां

म्हांनै नीं लागै भूख

म्हे फगत घास खावां हां

उगै है घास

अर देस री खेती

उगै है नख

अर अतीत।

गळयां में सूंनेड़

सगळा काम तै व्हेयगा

नीं बौलै भूंकलौ

सोक्यूं बीत जासी।

मर् ‌योड़ा लोग आपरै नांव माथै

पट्टौ लिखग्या

बिरखा री झड़ी लागगी

अजेस नीं व्हियौ जुद्ध रौ ऐलान

नीं इण सारू कीं भागादौड़ी

म्हे खावां घास

अर देस री खेती

म्हे खावां नख

अर खावां अतीत।

म्हांरै कनै दबकावण वास्तै कीं नीं

अर नीं गमावण सारू कोई चीज़

नीं कैवण जोग कीं बात

घड़ी रै मांय चाबी भरदी

बिलां रौ कर दियौ भुगताण

पूरी व्हैगी साफ सफाई

जाए रयी है छेली बस

पण वा खाली है

म्हे नीं कर सकां सिकायत

म्हे किण री उडीक में हां?

स्रोत
  • पोथी : परंपरा ,
  • सिरजक : हंस मैग्नस एनज़ेंसबर्गर ,
  • संपादक : नारायण सिंह भाटी ,
  • प्रकाशक : राजस्थांनी सोध संस्थान चौपासणी
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