अण बस जोतसी

नीं पढ सकै,

नागी हथाळी माथै

खींच्योड़ी लीकट्यां रा

आखर।

दैखै हाथ नै उळट पळट।

कुंडळी रा सिगळा

घर

शनीचर रै कब्जै

राऊ केतु री करड़ी

नींजर रै समचै।

फाट्योरी आंख्यां

पसार्‌‌‌यां

ढूंढै भाग रो

एका’ध घर

कुंडळी रै खूणै कचूणै।

गताघम पज्योड़ो

जोतसी

घोर रींध रोही

टीटूड़ी री

बोली लारै

आकळ बाकळ

घूमै

ताती रैत में

नागी खुड़दड़ी

पगथळ्या

लिया जजमान

रा सुपना

जीतणै री

झूठी आस में।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली मार्च-जून 1996 ,
  • सिरजक : सत्यदीप ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राष्ट्र भाषा हिन्दी प्रचार समिति, श्रीडूंगरगढ़ (राजस्थान)
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