उडता पंखेरू मांडै आखर गगन पै,

गूंगी धरा पै कोई बांचै बोलै रे।

झालौ देवौ रे झीणै चूंघट कळियां,

आंधौ मुलक, कोई हांसै हालै रे।

गूंगी धरा पै....

पीड़ा हेलौ देवै, कोई बात बूझै रे,

प्रीत की बावरी पळक नहीं पूछ रे।

दमना जे दीखै वै पराया सबका ही रे,

देळ बिसवासै धणी द्वार खोलै रे।

गूंगी धरा पै....

पतझड़ कद आयौ अर कद चलग्यौ,

आमौ कद मोर आयौ अर कद फळग्यौ,

अब कै बसंत में कदेक बोली कोयल,

कुण विरहण हाय बैठी हिंडोळे रे।

गूंगी धरा पै....

बायरा गावै छै रे कै नसास ढाळे छै,

सूरज बाळे छै रे कै जगत उजाळे छै,

नाचै छै ये झरणां कै भटकै छै दर-दर,

न्हावै तो यां में कोई मन झकोळे रे।

गूंगी धरा पै....

अपणां ही सुर में अपणां गीत गावणां,

अपणी ही रामकथा मुलक सुणावणां,

बोझ तौ ऊमर कौ ढोवै छै सारी दुनियां,

हेत कौ कळस बोझ्यां मर-मर डोलै रे।

गूंगी धरा पै....

स्रोत
  • पोथी : अपरंच ,
  • सिरजक : रघुराजसिंह हाड़ा ,
  • संपादक : गौतम अरोड़ा
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