बार-बार

रंग-रूप बदळ’र

वेस-भूसा पलट’र

भेज दियो जावूं

इण रंगमंच पर...

जिणरी

चकाचूंधी रोसण्यां

झिळमिळ-इंदरजाळी

अंधारा

मीठी-मस्तानी हंसी में

नसीली फु सफ साटां सूं

हुय जावूं चमगूंगो अर

भूल जावूं कै

म्हैं कुण हूं?

म्हनै निरदेसक

क्यूं भेज्यो है?

कांई करणो है म्हनै?

किसो पात्र निभावणे है?

इण हो-हल्ला-सोर मांय

प्राउंटर री आवाज

दब जावै-

आज

गाफल-अणजाणो सो

खड़यो हूं

इण रंगमंच माथै

अर

नाटक रो समै

बीततो जा रैयो है

रीततो जा रैयो है!

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली ,
  • सिरजक : लक्ष्मीनारायण रंगा ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : मरुभूमि शोध संस्थान राष्ट्रभाषा हिन्दी समिति
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