दो टोपा आंसू टपका

जंगळ-जंगळ तैं भटकाया

तिस अगस्त री बुझै कठै

मृगजळ मृगजळ तैं अटकाया

तन-मन सूं लपटां लपकी

गमगी बा लोरी री थपकी

लीला माया री गजब री

काचै सूत सूं तैं लटकाया

सिंझ्या रा बै तारा गावै

उगतौ छिपतो सूरज भावै

झलक दिखा चंदो छिपग्यो

आंचळ-आंचळ तैं भरमाया

कलम थमगी हिवड़ो गमग्यो

मोती बो मन रो गळग्यो

तारां री झीणी छाया में

कोरा वादा तै गटकाया।

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत फरवरी-मार्च ,
  • सिरजक : मुखराम माकड़ ‘माहिर’ ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर
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