थूं किसडो करुणा-सागर!

कमळ-पांखड़ी ठाड़ पड़ी

थें एक मांडणो मांडियो।

कितरी सी जिनगाणी उणरी

म्हैं जाण्यो अजर-अमर!

थूं किसड़ो करुणा-सागर!

बरसण सारू दिखणादे सूं

एक बादळी ऊमठी।

वा तो उड़ी हवा रै सागै

म्हैं जाण्यो भरियो सरवर।

थूं किसडो करुणा-सागर!

आभै मांहै एक पलक भर

इन्द्र-धनख थैं तांणियो।

वो तो एक पलक में बिखर्‌यो

म्हैं जाण्यो रंग देसी घर!

थूं किसडो करुणा-सागर!

काळा भंवर बादळा मांही

खिंवी पलक भर बीजळी

कितरो सो उजवाळो उणरो

म्हैं जाण्यो आखी ऊमर!

थूं किसडो करुणा-सागर!

बागां मांहै फूल खिल्या है

रंग-बिरंगा राग सूं।

परभातां मन-मोवन मुळकै

सांझ पड्यां बिखरै झर-झर!

थूं किसडो करुणा-सागर!

राग-रंग लाखीणा रचिया

है थें कितरै चाव सूं।

इतरा रंग-उमंग-रीझणो

पल दो पल में जाय बिखर!

थूं किसड़ो करुणा-सागर!

सगळी स्रिस्टि बीखरै पल में

ज्यूं सपनां रा माळिया

नीचै वाळा रोवै-हस लै—

थूं वां सूं ऊपर-ऊपर!

थूं किसडो करुणा-सागर!

कमळ-पांखडी ठाड़ पड़ी

थें एक मांडणौ मांडियो!

कितरी-सी जिनगाणी उणरी

म्हैं जाण्यो आखी ऊमर!

थूं किसडो करुणा-सागर!

स्रोत
  • पोथी : सगळां री पीड़ा-मेघ ,
  • सिरजक : नैनमल जैन ,
  • प्रकाशक : कला प्रकासण, जालोर ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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