अबै समद में झळा नीसरै, लाय लपालप छायी।

तम री आंवळ मांय छिपी है, हिरदै री अबखायी।

रात अंधारै मांय आपणै,

लिपटै चांद जळेरी।

सुरजी री किरणावळ पळकै,

कळमस मिटै थळेरी।

पांडव पांच हिंवाळै गळग्या, किण रै है गळदायी?

अबै समद में झळा नीसरै, लाय लपालप छायी।

रंग बदळता रै सावण में,

गिरगिट खुद बर-बर में।

जियां मीडिया करै फजीहत

सदै आपणै घर में।

दिल री दरिया सिमटै लागी, दरमैं नांय समायी।

अबैं समद में झळा नीसरै, लाय लपालय छायी।

आकळ-बाकळ हुवै ऊंदरो,

सिकरै रै सूंसाटै।

खुलै बारणै बिल नीं सूझै

कठै जीव नै डाटै।

अैन चौखटै घ्यारी मंडगी, लागै धायी-फायी।

अबै समद में झळा नीसरै, लाय लपालप छायी।

जीवां सूं व्है नर परवारै

गेर आपरी लोई।

नीकरमै रो कुण-के करल्यै

मिलै कठै नीं ढोई।

चौघ करणिया चौघी माणस, बै नर बाजै घायी।

अबै समद में झळा नीसरै, लाय लपालप छायी।

स्रोत
  • पोथी : जागै जीवन जोत ,
  • सिरजक : सत्यनारायण इन्दौरिया ,
  • प्रकाशक : कार्तिकेय प्रकाशन (रतनगढ़) ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
जुड़्योड़ा विसै