चालो छत पै चाल चांदणी पील्यां

आंसूं पौंछां मंसा माफक, मिनख जमारो जील्यां।

या कोरां भर दूध कटोरो, झींझर कौ झरणाटो,

नूता दे मंदरा-मंदरा अलगोजां कौ गरणाटो,

बायरिया का शेळा डोरा, घाव हियै का सील्यां-

चालो छत पै चाल चांदणी पील्यां।

चौमेरू छळ जाळ बिछावै, डगर-डगर डरपावै,

मुळकाबो तो दूर, उमंगां मन में ही मर जावै

यां सांपां कौ विष कुदरत कौ काळबेलियो कील्यां-

चालो छत पै चाल चांदणी पील्यां।

अन्त अबोलक, आस अचपळी, ये गिणती की सांसां

ऊं पै भी अकदम कसकै, करड़ी पीड़ा की फांसां,

हेत मिलै तो ऊमर का यै बळता दुख सह भी ल्यां-

चालो छत पै चाल चांदणी पील्यां।

नैणां नैणां सपना सारां, हिंदळोटा नजरां में

हांसी खेलै छिंयापतायी आपण आपूं छील्यां-

चालो छत पै चाल चांदणी पील्यां।

स्रोत
  • पोथी : जातरा अर पड़ाव ,
  • सिरजक : रघुराजसिंह हाडा ,
  • संपादक : नंद भारद्वाज ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी ,
  • संस्करण : प्रथम
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