लागगी अदेवळ

खड़्यै खेजड़ै

सांस-सांस बिचूरै

खुळती जड़ा में

टिकाव रा झूठा सूंण।

दिखणादै भळभळतै

खार समंद सूं

अबोल उतरादै

आंधै हिंवाळै तांई

ढूंढतां-ढूंढता थाकग्या

पग लू'लै हिंवळास मिरगै रा,

फोड़ लियो भोड आपरो

भाटां सूं भचीड़!

जगतै जंगळ सूं

उफस्या फाला फिरोळतो

दांतां बिचै चिगदीजी जीभ सूं

कीं केंवतो,

पूजतो रैयो भाटा...

चाटतो रैयो पता

जूठण रा।

सूरज रै ठिकाणै भेजतो रैयो

चिठ्ठी पर चिठ्ठी

अंधारपख रै देस सूं

जिण मांय नीं लिख पायो

अेक आखर च्यानणै री

अडीक रा!

अंधारै रै रोजणां रा!!

छेकड़ आंख मींच

जाड़ भींच

अंधारै सूं थरप जुध

चक लियो चिटली पर

चांद...

कंठां तांई धाप परो।

स्रोत
  • सिरजक : सत्यदीप 'अपनत्व' ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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