पतंग उडांवतो टाबर

उडण लागै

आभै मांय...

देवण लागै ढील

सायर होंवती रैवै पतंग

बायरै साम्हीं

छाती ताण्यां!

पतंग सुपनो है टाबर रो

अर सुपनां रो

इंदरधनख है,

धनख!

जिणनैं

ताण राख्यो है टाबर

ऊंचै आभै मांय....

मत टोको टाबर नैं

देवण देवो ढील

उडावण देवो पतंग

लड़ावण देवो पेच,

नीं तो

टूट जावैलो इंदरधनख

बिखर जावैलो बाळपण।

अर

टूट जावैला सुपनां

अर सुपनां ईज तो है टाबर!

स्रोत
  • सिरजक : मदन सैनी ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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