दीनूं रो छोरो
ठीक सूं अपणै पैरां
खड़ौ ई नीं हुयो हो
अर, ऊं रै सिर आगी ही
घर री पाग।
हाल ऊं रै
दाढ़ी आई ही न मूंछ
अर, वा ओढ़ ली
पनप गिया हा
छोरै रै जह्न मं।
पीठ अर पेट रा
आंतरा सूं अणजाण
वो ढोय रह्यो छै
अपणी गिरस्थी रो
अणूतो भार।
लुळगी है
बेटेम बुढ़ाता
दीनूं रा छोरा री पीठ...
वो थाक’र पैर मोडै’क
गोडा धस्या जावैं पेट में।
हार्या थक्या री आँख लागै’क
दीनूं रा छोरा नै
डरा जावैं खोटा सुपणा...
वो उठै अर चाल देवै
अपणी लीर लीर बंधी पाग नै ओढ़’र
अपणा गिरस्थ रा बोझ नै बटोर’र।