रसोवड़ी में

चूल्है री बैवणी स्हारै

बैठी जेठाणी

घालती बळीतो

रसोवड़ी धूंआधोर...

गोडां में लेय'र दूध पांवती

रीं-रीं करतै छोरै रै

देवराणी फटकार नाख्या चपीड़!

अरड़ावतै टींगर रा बोबरड़ा सूं

हुय'र सैंतरो-बेंतरो

सरड़ दाणी निकळ्यो धूंओ

रसोवड़ी सूं बारै।

आंख्यां में लियां धूंअैं रा गोट

गळगळी हुय'र

बोली जेठाणी-

‘’नवी दांतळी आवै

चालतो हुयसी झसरो मिसरां में

फेर क्यूं मारै छोरे रै बिना काम?’’

‘’मेरो छोरो! मारूं कै बाढूं

थानै मतळब?’’

हब्ब दाणी चूल्है में उठी लपट

देवराणी रा बोल बणग्या धूंओ!

बळती आंख्या..

जेठाणी चुप..!

छोरो चुप..!!

चूल्है में मची होड

लकड़्यां री चटपट

छाणां री राख...

लाय नाची

खुली रसोवड़ी रै आंगणै!

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुनियोड़ी ,
  • सिरजक : जगदीशनाथ भादू 'प्रेम'
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