किवाड़ बाजतां ई म्हनै ठाह पड़ियौ,
औ थूं ईज होवसी,
थूं आई अर सांभण लागी
म्हारी जियाजूण
झाड़ लीनी केई दिनां री कंप,
म्हारै ओरा री,
अर गूंथण लागी म्हारी कलम रै लूंब।
थूं आई अर म्हारै हाथां सूं खोस लीनी
कागद अर कलम,
बांचण बैठी म्हारी ऊजड़ बात,
बात बांचतां - बांचता,
झर आयौ नैणां मांय,
थारै अंतै मांयलौ आंसू
अर उवा
आजलग भूरौ सैनाण बण,
म्हनै रोज चितारै है
उण कागद माथै सूखौ बैठ्यौ।
थूं आई अर सूनी पड़ी भींतां
आपरी जूनी पापड़ी छोड़ी,
म्हनै लागै उवा राजी हुय'र आपरी
दंताळी हंसी बतावण लागी ही,
थारै आवतां ई ओरै मांय
जूनोड़ी किताबां-
आपरौ पानौ घूंघट रै ज्यूं उठा'र
थारै गालां माथै आयोड़ी
रेख देखण लागी ही।
थूं गई, पण थारै गयां पछै,
आई है अेक चिड़कली अठै,
उवा जतन करै है आपरै आळै री,
उवा रोवै है- जद कोय बिल्ली
उणरौ बाळ लै जावै,
अर उवा मुळकै है,
धूड़ रै मांय रमै है
जद कांठळ री छांव उणनै
केवै के आज मेह आवसी।
सुण! उवा चिड़कली
थारै गया पछै ईज आई है।