छड़ती छड़ियो

दादी...

ढळतै दिन गडाळ री छिंया,

ऊरती लप-लप बाजरी

ऊंखळी रै ऊंडै पेट।

देती हळकै हाथ

छांटा पाणी रा

मूसळ रै घमकै सूं पैलां

चोटै-चोट फिरोळती

कंवळास सूं दाणो-दाणो बाजरी।

हा'रै उकळतो खदबद आंधण

थेपड़ियां रै, छाणां रै ताप

आपो-आप

ऊरती खीचड़ो दादी

जड़िया मोठां री दाळ

छड़ियै रै हेत...

चाठू मुळकतो।

स्रोत
  • सिरजक : सत्यदीप 'अपनत्व' ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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