खेत खड़णनै हळ ले हाली,
जद करसां री टोळी;
कितरा दिन तक सबर करैला,
माटी हंसनै बोली;
रे बंदा चेत मांनखा चेत,
जमांनौ चेतण रौ आयौ !
इण माटी में सौ-सौ पीढ़ी, मरगी भूखी प्यासी;
भाग भरोसै रह्यौ बावळा, प्रीत करी आकासी;
कदै तौ पड़ग्यौ काळ अभागौ, गिणगिण काढ्यौ दोरौ;
कदै तौ ठाकर लाटौ लाट्यौ, कदै लाटग्यौ बोरौ;
कदै तौ बैरी दावौ पड़ग्यौ, कदै आयगी रोळी;
कितरा दिन तक सबर करैला, माटी हंसनै बोली;
रे बंदा चेत मांनखा चेत,
जमांनौ चेतण रौ आयौ !
मांग्यां खेत मिळै नीं करसा, मोल चुकाणौ पड़सी;
मोत्यां मूंघी इण धरती रौ, कौल निभाणौ पड़सी,
सांम्ही छाती जे कोई आयौ, जोर जतांणौ पड़सी;
खेत खड़ंतां हळ जे रोक्यौ, हाथ कटाणौ पड़सी;
लोई बिना रंग नीं आवै, धरती पड़गी धोळी;
कितरा दिन तक सबर करैला, माटी हंसनै बोली;
रे बंदा चेत मांनखा चेत,
जमांनौ चेतण रौ आयौ !