थूं तो घणों ही

करढों हो ग्यौ रे

बस परेम को

एक ही दरड़को पटक'र

आगो न्हाळ्यो पांछो,

देख तो सणी

मन-ही-मन मं

घास भेरू बी तो

फेर लिया

हेत का गांव कं

च्यारूं मेर,

अर ठाम बी तो चुका दी

फेर बी तो थांरा मन कां

इन्द्र देव चेत्या

अस्यौ बी कांईं

पाप हो ग्यो,

हेत की करी कन्या नै

आज घुडला मं दीवळो

चेता लियो छो मन कै भीतर,

अर देख,

बारै तो कढ़,

थांरै बारणै खड़ी छै

तसाई

मन की मेंढकी,

सूण को पाणी

पटक'र चेता दै रै,

सावण की लोर,

तो लगा दै

भादवा की झड़ी,

देख दरावडा

पड़बा लाग गया हेत की

सूखती ज़मीं मं

काई सूखो

पटकैगो कै

म्हारा

जमारा मं

परेम को,

चाल थूं कह दै जै

और बी कर लूं

टोटक्या

पण

मूंडा सूं बोल तो सणी

म्हारा देवता,

घणी तरसाली

अब तो मन को

कारज सार,

खड़ी छूं

माथां पै परेम की

पछेरी धर'र,

अरे खड़ी छू

मुंडो सी 'र,

काचा सूत सूं

हाथां नै बांध र........।

स्रोत
  • सिरजक : मंजू कुमारी मेघवाल ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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