बुद्धि, बुद्धि रै पाण ई
माणस हुवै विसेस,
बुद्धि नै त्यागां पछै
कोई रह है सेस?
बुद्धि नै त्याग्यां पछै
मिनख बचै है ढोर,
बो राखै आचरण तज,
चरणै माथै जोर।
आज आपणै देस मैं
कठै रैयो आचरण,
बिना आचरण ई हुयो
मिनखापत रो मरण।
चरता-चरता चोरटा,
चरग्या सगळो देस,
सत्य, अहिंसा स्नेह रो
नाम रैयो नईं सेस।
जठै धरम दुकान पर
माथौ टेक्यां सींत,
मिलै, बठै संयम नियम,
कुण पाळै लो मीत?
‘बुद्ध’ संभाळो बावड़ो
जे चावो कल्याण,
जे चावो हो पावणो,
दुक्खां सूं निरवाण।
सदाचरण नै सीख तूं
खुद थारी सुध लेय,
बिसरावौ नईं ‘बुद्ध’ नै
दुनिया सूं बुध लेय।