दपूजो टोरती बगत

म्हैं नीं सोच्यो हो

थे इण ढाळै भांडसो

अर सीधी सी’क बात नै

बांकिज्योड़ै फूटै सूं कर देसो

नाप-नाप’र ठौड़-ठौड़ सूं

इत्ती लम्बी अर इत्ती बांकी।

काल रै दिन

म्हैं तोड़’र घड़ूंला

नूवां बारी-बांडा

तावड़ै में खटवी खावतो आज

परबारो चाल’र

थारै बगस्योड़ी

आंधी अर अंधेर रा

करणा सीखूं हूं-जापता।

इणीज खातर तो-

म्हैं कर दी है टाळ

थारी नुगराई हेठै दपूजै री

अर भाई

थारी सीवां नै करूं हूं-

खुणियां लांई सलाम!

भाई जी सलाम!!

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली, राजस्थानी मांय लोकचेतना री साहित्यिक पत्रिका ,
  • सिरजक : नीरज दइया ,
  • संपादक : श्याम महर्षि
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