मर ज्यावै मरजादा खातिर,

बळीदानां री खाण है।

सत पत री आण निभावणियौ,

अेहड़ौ म्हारौ रजथांण है॥

अठै सीस कटाया सूरमा,

पण नहीं लजाई पागड़ियां।

अर रगत रंग्योड़ै निज पूत नै,

हरख निहारै मावड़ियां॥

वीर बांकुरा री धरती,

तिरथां रै सिरसी पावन्नी।

सुर तरसै है इत आवण नै,

आह सुरगां नै लज्जावणी॥

नदियां बे'वै है लोही री,

बाणी जाणै खागां री।

जुधभूमी मांही सीस कटै,

पण लाज रखावै पागां री॥

इत बाळपणै सुत खेलै है,

तीरां- बाणां करवाळां स्यूं।

सींचै है सूरा धरती नै,

खुद रै लोही री धारा स्यूं॥

इण माटी री गोद्यां मांही,

घण हीरा पन्ना खेल्या हा।

इणही गोदी रा बांकुरिया,

बे घाव घणेरा झेल्या हा॥

केई बादसाह हार्‌या हा,

इंण वीर वसुधा रै आगै।

फौजां नै पाछी फोरी ही,

इणरा ही बेटा हा सागै॥

जिंण माटी नै सुर देवता,

नित सादर सीस नमावै है।

उण मायड़ भू नै बेटी,

खुद रौ भाळ चढ़ावै है॥

स्रोत
  • पोथी : सबद भरै है साख ,
  • सिरजक : संतोष शेखावत ‘बरड़वा’ ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार
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