मायड़ री काया ना छेद्या, बण्यां सपूत रैवैलो मांण।
कण-कण अैड़ी सीख देवै है, मती घटाज्यो देस रो मांण...॥
रघुकुळ राज हुआ अैड़ा,वचना रो जांणता सगळो सार
विकरम जैड़ो सूरज चमक्यो, न्याव बत्तीसी राखतो ता
रूंख लगायो, ताण्यो हो अहिंसा रो तांण
पाठ-पढ़ायो निरगुटता रो, विस्व सांयती री राखी बात
दया धरम रै सागै-सागै, दीनी पाप-पुन री जांण...।
कण-कण अैड़ी सीख देवै है, मती घटाज्यो देस रो मांण...।
हेमाळै री चोटी केवै, बधती रैवै देस री स्यान
गंगा-जमुना मांय बैवाज्यो, धोय-धाय जुल्म्यां रा पाप
देस रो सागी नक्सो रेवै, चलै नईं अपरोकी चाल
चाल-चालणियां आवै जकां सूं, हाथूं-हाथ कर्या जबाब
सीस कट्यो राहू-केतू सा, मती बणाज्यो देस रा भाग...।
कण-कण अैड़ी सीख देवै है, मती घटाज्यो देस रो मांण...॥
देस में रैवै भासा-भासी, रूड़ी सँस्कृति म्हांरै धाम
भेख-बागां री सोभा सूं, म्हारै देसड़लै री है पैचांण
बागो पस्चिम रो धार्यां सूं, कागभुसण्ड नईं बणै नबाब
काम नीं आवै होड-होडाई, जकां करी पड़्या सड़ रैया खाड
खाड पड़्यां विगसाव देस रो, किंयां बधैला सांगो-पांग...?
कण-कण अैड़ी सीख देवै है, मती घटाज्यो देस रो मांण...॥
सूरां रो बळिदान अैळो नीं, जाय सकै ओ राखणो ध्यान
सतियां सत रै लारै ई, मायड़ रा है मोटा भाग
संतां री बाणी सूं बेसी, नईं बणी कोई बीजी राग
नीर-क्षीर रो न्याव करणियो, देस नईं कोई बीजो आज
बोई रैवै रूतबो रूड़ो, जीवण री बा’ई राखज्यो छाप...।
कण-कण अैड़ी सीख देवै है, मती घटाज्यो देस रो मांण...॥
सूरां रो बळिदान अैळो नीं, जाय सकै ओ राखणो ध्यान
सतियां रै सत रै लारै ई, मायड़ रा है मोटा भाग
संतां री बाणी सूं बेसी, नईं बणी कोई बीजी राग
नीर-क्षीर रो न्याव करणियो, देस नंईं कोई बीजो आज
बोई रैवै रूतबो रूड़ो, जीवण री बा’ई राखज्यो छाप...।
कण-कण अैड़ी सीख देवै है, मती घटाज्यो देस रो मांण...॥
मायड़ री काया ना छेद्या...॥