बूढ़ा बडेरा टाबर टोळी

मांग रिया है पाणी-वाणी

नीं पाणी कठै है जीवण

प्यासी धरती कठै है धन

जंगल जंगल बात है चाली

कुदरत सगळी मांगे पाणी

पांखीड़ा री प्यास बुझावों

जिनावरा री आस जगावो

खेत खड्या सदा लहरावै

हरियाली रो रूप है पाणी

अपनी वाणी अपना पाणी

राख संभाल'र कैवे है नानी

मुरधर मांय बण्यो मिरगलो

सूख रैयो धरती रो पाणी

कीं तो जाणो माँ री वाणी

दे दो हम्मै पाणी वाणी

मानो अरज प्रेम सुं म्हारी

जीवण चाले पाणी वाणी..।

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुणियोड़ी ,
  • सिरजक : कृष्णा आचार्य ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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