थे कांईं सोचो
थे दूजा लोगा नै दरसण देवोला,
तो म्हैं कोनी देखूंला थांनै?
थे देवोला वरदांन कोई नै
तो कांईं म्हारै खोळा रो पल्लो, रै जावैला खाली?
थे मुळकोला कोई सांम्है
कांई म्हैं कोनी रींझूला थांरै मन रा उजळास माथै?
अर कांईं थांरो परसाद,
कोई भगत म्हारी निजर लागां बिना,
ले जा सकैला आपरै घरै?
थे आवोला बगीचा में—
तो कांईं कोरी घास ई बिछैला थांरा चरणां हेठै?
थे जागता बैठा होवोला रात रा पिलंग माथै
कांईं म्हैं कोनी होऊंला छिपियोड़ा अंधारा में?
चांद तारां री जगमगती उजास में?
थे जद ऊग समंदर रै कांठै
निजरां पसारोला
जळ थळ गिगन रा मिलण-खितिज तांईं
कांई म्हैं कोनी होऊंला
उडता पांखी ज्यूं ढळता सूरज रै सांम्है?
थे कांईं सोचो!