किण लेखै सू बंध्योड़ौ
फूटयौड़ै करमा रौ जोग
के' ओछौ व्हैतौ जावै
सालो-साल
बापू रौ धोतियौ...
कोई लीक धुवै री
कूड़ा चितराम बतावै
खून ऊकळै
पण, खेत
खेत तो जेठ में इज बळग्या
सावण मरै के जीवै
अंगूठे री नोक माथै
बैठौ रैवै रंगीलौ सुपनौ
अंगूठौ बतावतो
तड़कै इज
छांणा थेपणै री आवाज
खासी जेज
सरणाटै रै साथै तिरतो रैवै
जूनी पीड़ री ओळू है आ
कितराई मंसूबा ऊग्यौडा
म्हारै च्यारू मेर
देह रौ पांणी पोखता रैवै।