लहूलुहाण करली आपरी चूंच,

चिड़कली नै

आपरो चैरो देख’र कांच में

एकदम आज रै मिनख री तरियां।

जिकौ जद भी देखै

आपरौ उणियारौ कांच में,

अेक नूंवो उणियारौ दीसै,

लागै बींनै,

आपरै मांयलौ सांच।

तद उणनै लागै

बो अंधारी गुफा है।

या फेर अकूड़ी

जिठै चिथड़ां, कांच रा रंग बिरंगा टुकड़ां,

गंधावणा लैरकां री तरिया,

उण रै मांयलौ,

छळ-कपट, कूड़, ठग-विद्यावां,

बिरथा इतिहास,

फालतू कहाणियां उचक्कै।

उणनै लागै

जिकौ बो बारणै सूं है

बो कठै मांयनै सूं?

फेर करै लहूलुहाण

चिड़कली री तरिया

आपरै जीवड़ै नै।

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत ,
  • सिरजक : यादवेन्द्र शर्मा ‘चन्द्र’ ,
  • संपादक : भगवतीलाल व्यास
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