म्हारै

मनचावै दरखत गुलमोहर री

सै सूं ऊंची डाळ बीचै

हरमेस

सजावती-संवारती

आपू-आपरौ आलणौ चिड़कल्यां...

म्हैं नितुगै

देखतो चीड़ी आलणै नै

इण विध अरथावतो

आपू-आपनै

अर खुद रै आलणै नै।

जूनी आडी

झूरै छियां

तावड़ै सारू

तावड़ो भेंट्यां

मिट जावै छियां

कुण सुलझावै

जूनी आडी।

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुनियोड़ी ,
  • सिरजक : कमल रंगा
जुड़्योड़ा विसै