घणै दिनां पछै

आज गांव आयौ हूं रिंकी

अेक जांणोजांण जबरी-सी सौरम है

अठै री माटी में

म्हैं इण माटी में पोरूवा फेरनै

हुवतौ जावूं इण सौरम भेळौ

इण गांव रै उतरादै कुवै रै चरपरै पांणी में

कोई जीवण देवतौ स्वाद है

म्हैं इण पांणी रै ओळावै

थारी ओळूं रै समदर में उतरतौ, डूबतौ जावूं

अठै री हवा में चढ़तै फागण रै धमाल मांय

है किणी प्रेम रौ हेलौ

म्हैं घुळती रात मांय घुळती इण री रागणियां मांय

घुळतौ जावूं

इण माटी, पांणी, हवा मांय थारौ

थारै हेत रौ अेक परस है रिंकी

म्हैं इण माटी, पांणी, हवा रै हेतीलै परस मांय

गम जावणौ चावूं

थन्नै पावणै रौ

इण गम जावणै सूं सांतरौ

बीजौ कोई मारग नीं रिंकी!

स्रोत
  • पोथी : रिंकी टेलर ,
  • सिरजक : कुमार अजय ,
  • प्रकाशक : एकता प्रकाशन
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