धरती नै सींचां म्है तौ लोहीड़ै री धार

इतरी कीकर मांगै बीघोड़ी सरकार?

छाळा पड़ग्या सूड़ करता, हाथां आई-ठाण

कम्मर हुयगी बेवड़ी जी करतां निदांण

तोई कीकर मांगै बीघोड़ी सरकार?

पांणत करै पांणतियौ रे सियाळै री रात

छुल गई चांमड़ी, चिरीज गया हाथ

पच्छे कीकर मांगै बीघोड़ी सरकार?

खेत खड़ां हळ बीजां, पांणी बांधां पाळ

हिवड़ै सूं मूंघी राखां खेती नै रुखाळ

जणै कीकर मांगै बीघोड़ी सरकार?

नैना-नैना टाबरां रौ मन बिलामाय

आधी आधी भूख काडां पांणीड़ौ पाय

तोई कीकर मांगै बीघोड़ी सरकार?

होळी नै दीवाळी आवै तीज रौ तिंवार

नवै दिन निरणी रैवै जापै सूती नार

पच्छै कीकर मांगै बीघोड़ी सरकार?

धरती नै सींचां म्हैं तौ लोहीड़ै री धार

इतरी कीकर मांगै बीघोड़ी सरकार?

स्रोत
  • पोथी : चेत मांनखा ,
  • सिरजक : रेवंतदान चारण कल्पित ,
  • संपादक : कोमल कोठारी ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रन्थागार, जोधपुर
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