ज्यूं भूलग्या थे
स्रिस्टि री रचना कर, उणरो कारण,
अर मतै मतै बधण दिया सगळां नै
परायां नै बस में कर, दूजां ने मार दूजां रो नास कर
थै तो भूलग्या होवोला
अेक दिन दरसण देय,
थै म्हारै नैणां में जगाई अेक उडीक,
म्हनैं बतळाय,
थै म्हारै मन में जगाई अेक तिरस,
म्हनैं परस कर,
म्हारी देही नै जगाय दी थै
अेक संवेदन भरी वीणा री झणकार में!
क्यूं कै थांरी आ बांण है
सगळा प्रेम प्राथनावां में जमियोड़ा
हेताळुवां साथै रोजीना, इकसार!
पण म्हनैं याद है हाल
वै बीजळ दरसण रा झमका,
वै परस रा राग रंग रचिया छिण,
जद म्हैं, बिना आगली पाछली रो विचार कियां
धारली मन में
कै थांने म्हारै बारै कोनी रैवण दूंला
अर म्हारी पूजा सूं
थांरी मानता नै कर दूंला इत्ती अलौकिक
के थांरा गीत गायां ई जाऊंला
जलम जलम!
जठा लग कोनी होवै अेकाकार
आपां रा आपां,
अर मिट जावे आपांरा न्यारा न्यारा आपाण!
थै तो भूलग्या होस्यो!