म्हैं अहसानमंद हूं

मिनखपणै रा वां मोभी पूतां रौ

जिकां री खांतीली मेधा

अर अणथक जतन

अमानवी-यातनावां सूं गुजरतां थकां

भेळा कर पाया है कीं

भरोसैमंद आखर

जिका

आपां री भटक्योड़ी उम्मीदां साथै

जुड़तां

खोल सकै अेक नूंवौ मारग

अेक जींवत लखांण

परतख

अर असरदार

किणीं धारदार हथियार री भांत

वै चीर सकै अंधारै रौ काळजौ

मुगती दिरा सकै

तळधर में कैद उण उजास नै

जिकौ दे सकै आंख्यां नै नूंवी दीठ

ओप उणियारां नै

अेक अछेह आतमविस्वास—

जिण रै परवांण

उण ‘दयानिधान’ री

नींयत पिछांणी जा सकै!

स्रोत
  • पोथी : अंधार-पख ,
  • सिरजक : नन्द भारद्वाज ,
  • प्रकाशक : जनभासा प्रकासण, जोधपुर ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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