समंदर भर्या
संसार में
एक थूं ई
तो छै
जीन्है दिल
दिन-उठ
आठो पहर
याद कर छै,
सो बा दे
न जाग बा दे,
सांसा के मनका पै
असी कांई
भरकी फेरग्यो रे,
एक कर मल्या छै
म्हारा दिन अर रात,
भलाई काढै तो गळ्याई छै,
चतर चोकड़ियां
भरबा हाळा मन कै
बांधग्यो ओळख की
काचा सूत की जेवड़ी बणा’र,
सात्यां माढ-माढ’र मिटार
रह्या छै बार- बार थारै
राजी खुसी का
जाणै कसी धुन मं
लगोलग ऐ दोनूं हाथ।