सुख-दुख है मां-जाया भाई, माणस गिंगरथ गावै क्यूं?

लाभ-हाण जोड़ै सूं जामै, भळै अणेसो आवै क्यूं?

बाल-जवानी संग बुढापो, रैय नापतो जिनगानी।

उगै-आथमै सुरजी नितकी, भळै बात किण सूं छानी?

चक्र चालतो रैय लगोलग, समै वायरो बीत्यां जा।

स्वांस निवड़ता रैय जीव रा, तर-तर पूंजी रीत्यां जा।

ऊतर-ढींका जस-अपजस रा, सदै आखळी खावै क्यूं?

लाभ-हाण ज़ोड़ै सूं जामै, भळै अणेसो आवै क्यूं?

ऊषा रैय मुळकती दिनुगै, अळसावै सिंझ्या स्याणी।

टेर लगावै जणा पपैयो, बादळ सूं बरसै पाणी।

तपै-तपावै तेज-तावड़ी, धरा हुवै क्यूं अणसारी?

ऊमस रै बळ मंडै बादळी, मुळक उठै धरती सारी।

समै कदै नीं कीं रै बख में, मनड़ै नै उळझावै क्यूं।

लाभ-हाण जोड़ै सूं जामै, भळै अणेसो आवै क्यूं?

रैय जीवला सुख-सांयत सूं, हिरदै रै आंणद भेळै।

सरस बणा निज रै जीवन नै, दाता सुख सगळा मेळै।

सैजत रैय बैठती सावळ, सरस बणै सिस्टी सारी।

मिलै भाव रै भेळै सोक्यूं, जीवां नै बारम्बारी।

दिव्य-दीठ सूं राख भरोसो, चतरायी सूं चावै क्यूं?

लाभ-हाण जोड़ै सूं जामै, भळै अणेसो आवै क्यूं?

जिका भावना सूं नीं भरमै, बां री बात बताणी के?

भेळै रैय’र भिळै भिसळै, उण री नबज पिछाणी के?

साध दखां! निज रै किरतब नै, करै मतां ताका तोली।

जीवन रै विस्राम घाट री, भरम गांठ कुण-कद खोली?

करै जिका खुद भरै आपरै, भळै जीव पिछतावै क्यूं?

लाभ-हाण जोड़ै सूं जामै, भळै अणेसो आवै क्यूं?

स्रोत
  • पोथी : जागै जीवन जोत ,
  • सिरजक : सत्यनारायण इन्दौरिया ,
  • प्रकाशक : कार्तिकेय प्रकाशन (रतनगढ़) ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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