ईनैं पटको अबकै

बौळो चामां चढगौ

नीरौ गरबीजग्यौ

कींनै बदै कोनी

बापड़ौ हुयौ है

नुवों नेतो!

बेसी बोलै लागौ!

बण्यौ फिरै लिखारो!

ईंयालकी किताबां भोत देखी हां

पढ्या तो कोनी'क, पोथ्यां घणीं घींस्यां फिरता

अे मोटी-मोटी हुया करती, पण ईंनै देखौ

जाणैं है बिरमा जी!

कीं आवै जावै, फिरै खराब हुंतौ, बमंडी मारतौ!

कुण पूछै है ईंनै गांव मं?

कोई जाणैं तो कोनी!

ईंका बाप-दादा

लिख्या-पढ्या होग्या

जिकौ लिखै!

के बतावां भाया!

गांव मं बैठ्या-बैठ्या मरज्यास्यां अेक दिन

पढणै-लिखणै कै मिस भाग्यौ तो फिरै है न!

देखै है धरती का धन-भाव!

स्रोत
  • सिरजक : विमला महरिया 'मौज' ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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