अेक बेटी रो जीवण

कितरो अबखाई भरियो

कांई-कांई सैहन करै

पण नीं तो वा थाकिजै

अर नीं वा कदैई रूकै

बस चालती ही रैवै

क्यूंकि बेमाता दी है

बीं नै सगति घणी

सैहन करणै री

वा जाणै है कि

रूकणौ जीवण नीं है

पी’र में ही

वा सीख जावै

सैहन करणौ

भायां री वा होड़

नीं करै कदैई

सेवा करै दादा-दादी री

झिड़की भी सुणै दादी री

पण नी बोलै मुंडे ऊं

कदैई कीं रड़कता सबद

चुपचाप मां रो सारो बणै

कदैई रसोड़ै में

कदैई बाड़ै में

पछै इस्कुल भी जावै

गुरूआं रो कैणो करै

घणी पढ़ै, पास होवै

भाई सूं बत्ता नम्बर लावै

नौकरी करणी चावै

पण मायत भेजै सासरै

नौकरी करजै घरै थांरै

पण सैं कीं भूल जावै

रम जावै आंगणै

बणै बीनणी,भाभी

चाची,ताई अर माँ

सांची अेक बेटी रो

जीवण कितरो

अबखाई भरियो!

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुणियोड़ी ,
  • सिरजक : मान कँवर ’मैना’ ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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