तीर-सी तीखी तिसाई
आदमी री अणबुझी
उत्तेजना उन्माद री
अर आमना विज्ञापनी
बसावे सृष्टि मिस इंडिया री
विश्वसुन्दरी री।
प्रलोभन रै प्रकाश में
हीरां जड़्यो ताज एक
धरण विश्वसुन्दरी रै सिर सिखर
चटोरिया सटोरिया
मेलदै भूमंची मेज पर।
जड़ रो खिंचाव आंधो
बिना डोरी खींचलै बो
बूकिया विवेक रा बांधतो।
जवानी री थळी ऊपर ऊभी
सरूप नै बिसार
करती लैण लम्बी,
जड़ री शिकार बणी
खड़ी लाज री उडीक में
गोरड़ी किती ही
चैरो आरसी में आंकती।
ताज नै धरण सीस
पारख्यां री दीठ नै-
सूंपती शरीर
सोचै बा
मारलूं मोरचो किंयां हीं
तो समझूं
म्हारै लारलै जलम रो
भाग सूतो जागग्यो।
वाहवाही लूटलूं जगत री
घूम-घूम
धूम-धाम सागै
काढूं धाप-धाप
मन री रळी।
फेर नाम-धाम
रूप रा चितराम म्हारा
मानखै री जीभ पर
उछल सी उर्वशी हुयोड़ा।
पसरती मुस्कान मां-बाप री
थिरकसी भूमंच पर
जीवण आपरो बै मानसी
सूरज-सो सफळ।
म्हारै चांद सूं छिटकती
प्रकृति नै पटक पाछी
रचसी बै
पून्यू आपरी अलायदी।
पण आ समझावै कुण
धरा री बीं डीकरी नै
कै सुन्दरता रै तोल खातर
न ताकड़ी कठै ही
अर न बटखरा सखर।
प्रलोभन रै पालणै पर
टिकसी जठीनै
कोइया कुमाणसां रा
झुकसी पालणों बठीनै
बणसी बा ही अप्सरा।
हूं सोचूं —
इसी गोरड्यां सूं तो
सूकै तिणकलां पर ढूकती,
रूं-रूं सूंप मानखै नै
सीत रो संहार करती
परमारथ री पूतळी
भेड बांसूं लाख आछी
हुवो-हुवावो कीं
आए साल डालरी मैदान में
मीडिया रै होठां माथै
खुल्लैखाळै खेल ओ
बड़ी शान सूं खेलीजै।
वासना री बाढ
तोड़ती मरजाद रा किनारा,
दिन-रात वधै
रूप रै खजानै माथै
धाड़ पड़ै धोळै दिन रा।
रूप रो अणमोल मोती
वासना री झील सूं
काढलै अछत-
कठै लाधै स्सोरै सास
तेरू इसो तेजपुंज
सानदार सेवारत।
बैठ मीडिया री पीठ माथै
हंसतो-मुळकतो
सवार न्यूज रो निरवाळो
धरा रै ओर-छोर
बात करतां
पून दांईं पूगग्यो।
छोलरै री मींडकी
सुन्दरी अबै
पाव री हांडी
ऊरीजग्यो अच्छेर
तिड़ै पेट मावै कठै?
सतोल काया सिंघणी री
दबगी ताज रै खरगोश नीचै।
उळझता उन्माद में
अरमान बींरा बेशुमार
कींनै टैम कुण गिणै
औकात आदमी री किती
चित्रगुप्त कान पकड़ै।
जाग्यां-जाग्यां पोज बींरा
प्राणहीन-
रंग बदळतै किरड़ै रा सा,
बैठ कैमरां रै काळजै
नीकळै मुळकता।
अळसीड़ै पर आंख राखण
सज्जनां नै टैम कठै?
पण, लफंगां री रोळ आंख्यां
अकूरड़ी पर आम सोधै।
लिखीजै
बीं पर लेख लम्बा
अर छपै इंटरव्यू अनूठा
उठै अखबारी आकाश में
भरम रा भतूळिया ऊंचा बींरा।
लोभी रूप रा कस्टीडिया
चिराग माथै चक्कर काटै
मिलै चौफेर सूं निमंत्रण
समारोह सान्तरा सजै।
राष्ट्रपति बूढ़ा
अर हांफता खलीफ नेता
हाथ दोनूं धूजै
काटका निकाळता
उत्तर देवै दोनूं गोडा,
मूतण रो ही महारोग
आंख्यां ऊपर काच जाडा
भूँईज्योड़ा भांपणां
तो ही जोड़ता निजर,
पाठ करता सुन्दरी रो
पूग्या चावै जींवता सरग।
पूंजीपति-
अर प्रधान केई
खींच-खींच डोळा,
रूप नै निहारै
बाइपास सर्जरी नै सांभता।
खोल लेखनी जबान री
विशेषणां रै घोळ में गिचोळ
बै पून में उछाळै गंध प्रीत री।
दुख इतो ही खाली
कै बारे डावे पासै बाइपास
सागै घर री भारजा
आंख्यां आगै मिस यूनीवर्स
ईं तिघरी रै पींजरै में
करता मोत सूं कुचरणी
निभसी किताक दिन?
खाओ-पीओ मौज मांणों
कुमाणसां रो एक साच
विश्वसुन्दरी ही चमत्कार
जबान माथै राखसी
एकर नहीं सौ बार।
जुग आंधो
आपनै तो सूझै नहीं
अर औरां री बो मानै नहीं
बीं डूबतै नै झालै कोई
तो लेपड़ै बो अगलै नै हीं।
अबार जुग से प्रभाव डांवांडोळ
पून चालै क्वावली
बुद्धि पड़गी बैसकै
दीठ हुगी रोगली।
उदास बैठी टैम काढै
स्वाभिमानी शेरणी,
गादड़ां रै ताबै लागी
रंग-रंग राफां
लावा लूंटै लाजबारी लूंकड़ी।
लालसा री डाकणां
रूध बैठी मानखै रो काळजो,
पइसै सूं धाप नहीं
तिस्सां मरतो तड़भड़ै
हियै रो हिरणियों।
दृष्टि ताज खातर रोपतो
जुवती समाज आज रो
छेकड़लो आदर्श बो
मान बैठो-
विश्वसुन्दरी नै आपरो।
पण सुमति री स्वर्णपंखी
कूड़ री कल्पना छोड़
पग राखती जथारथी
म्हारी लेखनी नै पूछ बैठी,
कै विश्वसुन्दरी रा आंख-नाक
दांत-पांत पींडी-जांघ
सुरेख सगळी लागणी मानली।
अर मान लियो-
हाडक्यां रै पींजरै पर
चन्नण-सी चामड़ी से खोळ चढ्यो,
अर स्विमिंग सूट में सज्योड़ो
डील रो भूगोल बींरो सांतरो।
पण बाणी से पीयूष पी
साची साची बोल म्हारी निर्झरी
सुन्दरी-असुन्दरी रो भेद मेट
गिंडकड्यां री भीड़ में
दहाड़ मार शेर री सी।
बता-बता
विश्वसुन्दरी नै नाक सूं
नीकळै सेडो तो कतैई नहीं?
अर नास्यां री परनाळ में
जमै नहीं गूंघला
का नीकळै
गुळकन्द रा छूंतका गुलाब-सा?
आ तो बतावै कोई
खसूं-खसूं करतै गळै मांकर
नीकळै डचका खंखार रा
का लच्छा मळाई रा?
सीप-सी चमकती
आंखड्यां रै आभै नीचै
गीड नहीं बापरै,
जमै अफगान स्नो
का क्रीम कीमती बठै?
माथै में बटीड़ लाग्यां
सेडो आंसूं सागै आसी
जाबतो कितो ही राखो
डील माथै तेड़ चाल्यां
तूरकी लोही री ही छूटसी।
पिरांवडै री भींत टूट्यां
पड़ै कदेई खोपरा?
पड़सी आंख्यां आगै
छाणां अर थेपड़्यां।
मां बणी सुन्दरी रै
हांचळां में नीकळै कदेई
लाल धार बेदाणै री
सुणी नहीं सपनै में हीं।
पूत नै पालणै में राखो
चावै धरती पर सुवाणों
रैसी सगळै एकसा
हंसणों अर रोणों।
थूक अर ल्याळ भर् यो मूं
दिन-दिन धोळो हुंतै भोड में
जमसी खोरो
का जलमसी जूं
अर निकळसी लोटड़ी-सी टाट
धर् या रैसी धूड़माथै
साबण अर शैम्पू।
हाड-मांस अर चामड़ी री नींव पर
सुन्दरी-असुन्दरी रो भेद झूठो
शब्द-स्पर्श
अर नासिका री गन्ध
अदीठ सगळा रूप-रस
काम, क्रोध, भूख, तिस
राग-द्वेष रोंवणों-मुळकणों
मळ अर मूतणों
रूप सगळै एकसो,
अलग-अलग उपासना
पण राम सगळै एकसो
जीवन-मरण एकसो
फेर किसी सुन्दरी-असुन्दरी
रूप रो गुमान किसो?
आसक्ति रै आंख कठै
कठै मन रै पगलिया
बो तो बिना पांख्यां उडै
बींनै सूंपदै लगाम कोई
तो बो देव दुर्लभ दुर्ग रा
करदे डगळिया।
सिंघासणी सम्राट कांणों
ताण तम्बू डालरी,
रूप री रंगीली
नैणबंकी गोरड़ी
ताज रै मिजाज में
आंधी हुंती रीझगी,
भूल आपो आपरो
कांणै सागै घालगफ्फी
बेगम बणगी ईंट री
जीतग्यो कांणियों
आसक्ति रै जाळ में
हार हुगी रूप री।
एकै कांनी ओ हाल
चुणीजै मिस यूनीवर्स
अर विश्वसुन्दरी अनूठी
पण आंख्यां बांरी
मायाजाळ सूं ढकीजती
किंयां देखै
आंसू आठ-आठ नांखती
रोंवती उदास धरती?
सहअस्तित्व नै सिणक परियां
चांद नै बसायो चावै मायावी
मंगळ कांनी मूंढो कियां
आभै में उछालै टोपी आंपरी
रची चावै बठै बंगला-कोठी,
पण पगां बळती देखै नहीं
घर में बैठी फोड़ा भुगतै
साव नागी भुवाजी।
सामनै ही दूजै कांनी
एक अभागी लैंण गोरड़्यां री
कीड़ी नाळ किलबिलै
सूकती अर सूजती
पींजरै में सांकळ हुंती
आखड़ै-पड़ै।
बै ही जुवती
बांरै बै ही हाथ-पग
बै ही आंख-नाक
देह रो मकान एकसो
ईंट-माटी बींरी एकसी
रूप-रंग
अर रूप रो विकास बो ही
काम, क्रोध, राग, द्वेष
सगळा बिसा ही
पण आं गरीब गोरड्यां रै
न पूरी सरकी
अर न पूरी टापली।
कठै बांरै दोनूं टैम आटो-दाळ
डील माथै कठै बारै
पूर-गाभा साबता,
जिनावर री सी जूंण काढै
राखै डांग माथै डेरा।
पावस में पसीजै झुंपडी
वियोगण रै नैण-सी
आंधी में डगमगावै
आकड़ै री डाळी-सी
पण बींनै छोड जावै कठै
बांरै बा ही गढ
अर बा ही कोठी।
बरसतै में पूर भीगै
चूल्हो फेर किंयां जगै?
बाळक रोवै बाटियै नै
जी अमूंजै, काळजो पसीजै
बै ही जाणै
रात रोंवतां री किंयां नीकळै?
पाणी खातर पींदो झरती
कड़ैबारी बाल्टी,
घड़ियो एक खांडो-खोरो,
बाको तेड़ै,
मटकी एक गळबैवारी।
चूल्है चढै बड़ी दौरी
ठाली-भूली कानांबारी
कूलड़ती।
खांडी-खोरी सीस्यां
अर डबलिया मुच्योड़ा
चीणी माटी रा उदास कप
बै ही साबत नहीं हत्थैबारा।
आदम रै जमानै रो
काळो-कोझो
कूंटैबारो पींपलियो
बीं में हीं लूण-मिर्च
अर बीं में हीं आटो-दळियो,
ऊन्दरा अधावै रातभर
अकाळ में अधिकमासो।
आटो ओसण नै
माटी री परात एक
बा ही खांडी-खोरी,
कठै चकळो बेलण
कठै चींपियो चतर
कुड़छी कठै बापड़ी?
कागद अर बाळ-बाळ घोचा
आटो सेकै घूंवटै में
भाग ही बळीतो हुग्यो
दोनूं टैम बो ही कठै?
पाणी ही नसीब नहीं
बो ही रेतियो अर रोगलो,
कारखानी पून में
सास सागै बाथ घाल्यां
फेफड़ां में ऊतरै
धुंवो तिजाब रो।
मटमैलो एक लैंघलियो
अर कार् यां लागी ओढणी
किंयां तो न्हावै बा
अर निचोवै कांई बापड़ी
फेर ही लखदाद बींनै
जिंयां-तियां
लाज नै लुकोयां राखै आपरी।
अन्धेरै री चादर नीचै
लीरा हुंती गूदड़ी पर
कण हीं जणलियो जे गीगलो,
पण हांचळां में धार बिना
बो स्सोरै सास जीसी किंयां
मोत्यां मूंघो मोरलो?
ऊगतै अभागै बण
जे खोल आंख्यां
धरती एकर देखली
फेर मीच आंख्यां सदा खातर
करली जूण पूरी आपरी
रोंवतै टसकतै
तांण मावड़ी री चामड़ी
दिन केई काढ दिया कण हीं
तो निकळगी ओझरी तूम्बड़ी-सी
आंख्यां ऊंडी बैठगी
नाड़ा निकळी मूंगी डोरड़ी-सी।
दळियै रो ही सांसो जठै
तो कठै ही दवाई बठै?
दुनियां दीवानी
पइसै रै गुमान में
रोज हुवै रोगली
खोल राख्या संघ
जठै फोन अर फैक्स री
कमी नहीं
पण सुणै कुण
आवाज गरीब री कूकती
अर घड़कण धूजती धरा री?
जलमै पीड़ में,
जियै आह अर आसुंवां में
पण इसा होठ कठै
प्रीत सूं बुचकारै बांनै?
आज रै जमानै में
कींरो हियो हुळसै
इसा लम्बा हाथ कठै
जिका हेत खातर आगै बधै?
गीगो गयो गोरवैं
पीळियो भुगततो
खाट नै रूखाळै
धणी अधरोगलो।
आंख्यां सूं लाचार
सासू बूढी बापड़ी
असहाय छोड आंनै
बा जावै किंयां एकली?
आं अधमाणसां नै लियां सागै
नापती धरा रो डील
टुरपड़ी बा धीरै-धीरै,
बीं में कांई बीतसी
जीसी का जासी
राम जाणै।
लियां गांठ गाभलियां री
झाल्यां डांगड़ी डोकरी री।
रह-रह पग राखतो,
धणी चालै टसकतो।
लेंवतां बिसांईं
रोंवतो किंयां हीं।
पूग्यो सिंझ्या पड़ी
बै एक बसती रे किनारै,
अर मेल गांठड़ी
एक भींत रै सहारै
डेरो थरपलियो बठै ही
रामजी रै आसरै।
रूं-रूं कुळै
कदेई बा डोकरी नै दाबै
कदेई बा धणी नै संभाळै।
भूख मरतां,
रात नीकळै किंयां?
पण पी-पी बेबसी
काढ आंख्यां मांकर रात लम्बी
देखली किंयां हीं बां
उगाळी सूरण री।
बस्ती में जा
पाणी खातर जाचसी बा
कोई जूनी मटकड़ी
का ठंढी बासी रोटी खीचड़ी
फेर मजूरी खातर कीं सोचसी।
जे जीवण केई दिन
दियो साथ बींनै
तो संभाळसी किंयां हीं बा
धणी नै—डोकरी नै
जे पेलां गई आप
तो बां दोनां पर
आ उतरसी
बिना बुलायो कुंभीपाक।
आ भी एक सुन्दरी धरा री
ही कदेई फूठरी अनूठी।
पण भूख ले बैठी
कुण जाणै किती
अभागणां इसी
धरती रै काळजै
कद सूं बणावै
लैण लम्बी आपरी।
कतार एक और देखो
गोरड्यां री गुणवती
पोखती धरा नै
बै मूर्ति सजीव
शक्ति अर भक्ति री
धरती नै पसेव सींच सांतरो
खेती करै प्राणदाई स्वर्ण री।
कर खड़ो तप तावड़ै में
बा पानड़ां नै ऊपणै
भर-भर सैंठा छाजला
चारो तूड़ी अळगा कर
ढिग लगावै
जींवणदाई मोत्यां रा।
मोती बै रसोई नै जींवती
बींसूं पेट भरै मानखो
बीरै तांण चालै बींरी
जीवण गाडी दौड़ती।
गाय-भैंस स्सोरी राखै
बै दूध काढै, दही धमोड़ै
मीठी मैक घी री
सान्तरी सुगन्ध पून में भरै
अरोगतां दूध-दही
हंसतो-मुळकतो जीसकै
सौ साल आदमी।
आंख्यां में ओज बांरै अणमेधा
ऊफणै बळ बांरै बूकियां में
ऊमड़ै नेह री कळायण
बांरै काळजै रै नभ में।
पण जे बांरै चमकतै दीदार पर
वासना री दीठ आंधी
कुकर्मी कोई रोपदै
तो मौत नाचै बांरै क्रोध में
बै टेकदै ओळाथ री
तो हुवै अगलो गुड़दापेच
राफां हुवै रेत में।
सेडो अर मूतिया
टैम लागै पूंछतां
पाठ पढ्यो हो कदेई
बो जियै जितै याद राखै।
बै जणै लाल लाडला
चट्टान-सा फौलाद-सा
टूटो भलां हीं पण झुकै नहीं
पग पाछा देवै काळ रा।
हांचळां री इमी पा
पाळ-पाळ त्यार करै
हुतां हीं जवान जोध
देश री रूखाळी खातर
सरहद माथै भेजदै
मजाल है ममता रै तूफान में
बांरी बल्लरी रो
पत्तो कोई पीळो पड़े?
जींवण बां वीर बांकुड़ां रो
बचै चावै जावै
बांरै दोनां हाथां लाडू
जियै तो जमीन आपणी
मर् यां सरग में हीं ढोल बाजै
अर धरती माथै मेळा मंडै
सुन्दरी बै नाचती आकाश लागै,
कुण मोल बांरो
आखरां में आंकै?
बो दीखै सामनै
शहर रै सिराणैं ऊभो
धक् धक् धुंवों छोडतो
कोलाहल में डूबतो अर झूमतो
करामाती कारखानों।
ओ धणी मोटो
लिछमी रो वरदान ईंनै
हाथां सूं सिलाम करै
राम-राम ईंरै होठां माथै।
पण सोतां-उठतां
ध्यान ईंरो धन री चिड़कली पर
छोडै नहीं अवसर नै अणदेख्यो
चिड़कली री आंख माथै
तीर मारै तक'र।
ओ सुणै सगळां री
पण करै आपरी अलायदी।
टुकड़ो नांखण री कळां में ओ
उस्ताद पैली पांत रो
ओ सत्ता सूं अलायदो
पण सत्ता री तरकारी में
पड़ै लूंण ईंरो घाल्यो।
घरम ईंरो सूंतणों
पण ओढे राखै रामनेमी,
गळै में माळा मूंगियां री
करम ईंरो कूंडापंथी।
विदेस तांई हाथ ईंरा
लाभ री लकीर लम्बी
पण कागदां में घाटो चालै
बठै पूग नहीं पारख्यां री।
मानो मत मानो
पाघड़ी न पेचो,
कारखानों नावं ईंरो।
इंरै जैरी सांस नीचै
भोगती लाचारी
अभावग्रस्त सुन्दरी किती ही
ऊमर रै अटेरणैं सूं
उधेड़ै जीवण-सूत बापड़ी,
फाटेसर पूर
अर दो जून रोटी खातर
करै काया रोगली।
सास आंख्यां में
धक्योड़ी न्यारी,
हाड कुळै
काढै रात जागती।
छूट कारखानै सूं
सोचै, पग खाथा मेलती
तेड़ आंख्यां-
करता हुसी मां-मां
सूता ताव में
ठाकुरजी नै ठा
बैन-भाई लाघसी किंयां?
चितार-चितार चिड़ियां नै
कांपै रूं-रूं चिड़कोली रो
काळजै पर राख हाथ
खोलै बारणों कोठड़ी रो।
हाथ फेर देख्यो,
सिकै ताव
रिणकै रह-रह
आंख्यां खोलै अर मींचै
सूता अळसायोड़ा
काळजो चूंटीजै
मां, दो घूंट चा?
बांरै होठां पर मतै ही फूटै।
बा उठै संभाळै
बंधी चीरड़ी में
मिलगी चाय चिबटी
खांड खुणचखंड लाधगी ठाई।
पण हुई भाठै सूं हीं काठी
धार चळू भर दूध री।
धर् यो हो दूध गुटको
संभाळी बाटकी
पण बेटैम बैर साज्यो
चूसग्यो बींनै ऊंदरो कोई।
बा भूखी अर थकी न्यारी
जी करै अधघड़ी
कर लेंती काया पाधरी
तो लागती काम में
स्सोरै जी
कीं ससवीं हुयोड़ी।
जी करड़ो कर उठी
मोडा घणां मढी सांकड़ी
बीं में हीं गूदड़-गाभा
पड़ी खाटड़ी एक अधबळी-सी
पड़्या बठै ही
खांडा, खोरा बरतण भांडा
मुच्या डबलिया,
बठै ही बोरसी-
है बठै ही कोयला।
न खिड़की न रोशनदान
जी अमूंजै दिन में हीं
तो रात बळती
किंयां नीकळै उनाळै री?
कोटड़ी री पीठ लारै
निरंकुश नीरो-सो निरवाळो
फैंकै बो बेथाग बदबू
खळ-खळ करतो,
भागै एक ऊद्दंड नाळो।
अर सूंईं छाती कोटड़ी रै
दैत-सो दुख देंवतो
पसर् यो पड़्यो काळो कादो।
आगै कादो लारै नाळो
जीयै तो कोई जीयै किंयां
आगै खाड अर लारै कुवो?
दिन में बीं कोढ माथै
गीत गावै भीड़ माछरां री
बांरो जीवणों बठै ही
बांरो मरणों-जलमणों बठै ही,
सै ही काळजै रा कृतघण
लाधै नहीं भलो बांमें
टक्को सोनै रो दियां हीं।
चीरता अंधेरो बै
बोढ-बोढ चूंठिया
डील चूंटै रातभर
मजाल है आंख सुख री
मींचलै कोई मिंटभर
झौ चालै आखी रात
दाफड़ दिनूगै ही त्यार लाधै
हाथ, पग, पेट माथै।
डरपोक अर हींजड़ा
दिन में तो लुक्योड़ा रैसी
रात नै उग्रवादी बण्या
वीरता दिखासी,
जण-जण धणी ईं माजनै रा
मावड़ी क्यों राजी हुई?
सूरज री उगाळी
नांख पेट में
दळियो का बाजरी री गूघरी
का लूखा दो फलकिया
सागै च्यार कापी आलुंवा री
ठगा-परचा टाबरां नै
बो ही घोड़ो अर मैदान सागी
खाथी-खाथी सागी मारग टुरपड़ी
अधऊमर में धणी दियो धोखो
पाळना टाबर दो छोडग्यो
तो ही मजाल है बा हाथ मांडै
न रोवै रिणकै
पेट पाळै टाबरां रो
स्वाभिमान सागै।
ईं ढंग सूं सुन्दरी किती ही
दृढता सूं कूट-कूट भरी
आखो दिन खटै
अर करै ठोक छाती सामनो
रोग रो, वियोग रो, अभाव रो।
बै ताजपोसी सूं उठ्योड़ी ऊपर
सुन्दरता री नर्तकी किती ही
बांरी लग्न पर न्यौछावर।
समझ मानखै री-
जे सागी घर पूगगी कदेई
तो बींरै साच रै सम्मान में
सोच आदमी रो रीझसी
बो भूल नै कबूल कर
सोचणों की सीखसी?
धरापुत्री तपसण कोई
बणसी विश्वसुन्दरी बा ही
जिकै री कूख सूं
जलमसी कमलनैण
महापुरुष कोई
बो खो विषमता धरा री
भांगसी भेती
आदमी सूं आदमी री।
बणसी विश्वसुन्दरी बा
जिकै रै स्नेह-नद में स्नानकर
गळसी विषमता
खिलसी फूल प्रीत रा
अर विचरसी धरा पर
मानवी सै मां-जाया-सा।
पड़सी बीं आगै शत-शत ताज फीका
हुसी बा ही विश्वसुन्दरी।