अंतस उठता हबीड़-हबोळा

ढळता आंसू मांय रा मांय

भतूळियो-आंधी

करै परथक पीड़

थार समदर!

करणी चावै सांझा

उघड़ी पीड़

मिनखजात सूं

जुगां-जुगां रिस्तां

पाण थार समंदर !

पण नीं ठाह उणनै कै

पीड़ संवेदन रा माइक्रोवेव

समझ री दीठ अर

मन कानाबाती रो यंत्र आद

सैंग है

उण रा स्विच ऑफ री गळाई

हे थार समदर !

मती दुसरायै

अै तो आपरी रेंज में ही

आउट-ऑफ रेंज है

म्हारा थार समदर !

स्रोत
  • पोथी : बिणजारो 2016 ,
  • सिरजक : कमल रंगा ,
  • संपादक : नागराज शर्मा ,
  • प्रकाशक : बिणजारो प्रकाशन पिलानी
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