अेक-अेक तिणकलो चुग'र

आलणो बणावती

चिड़कली नीं जाणै

मिनख री भांत

कियां

उजाड्या जावै आळा?

और तो और

वा नीं जाणै

कै कियां कर्यो जावै

मातम उजड़ण रो

अर किण कनै सूं

मांग्यो जावै मुआवजो।

वा जाणै तो फगत

पाछो अेक-अेक तिणकलो चुगणो

अर आलणो बणावणो....

लगोलग....

अणथक....।

स्रोत
  • पोथी : मंडाण ,
  • सिरजक : कुमार अजय ,
  • संपादक : नीरज दइया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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