म्हूँ बिणजारो

आपणा अतीत ने

भर’र

स्मृतियां री बाळद में

हांक लगाऊं

गांव-गांव, गळी-गळी

इण छोर सूं

उण छोर तलक

स्यात्

कोई गुणी ग्राहक

मोल ले लेवै

आपणी चाहत रो सौदो

वस्यान तो कोनी है

म्हारो सौदो

उतरो बदसूरत-बोदो

जिणरो कोई ग्राहक न्ही हुवै

पण

बड़ा-बूढा री कैणात

बोल्यां तो बिक जावे बूमळा

बिन बोल्यां रैय जावै ज्वार

बिना सौदो बिक्या

इण मैंगाई रा जमाना में

म्हूं लाचार

अणी सूं चीखूं-चिल्लाऊं

बे-मौसम ही

हीड़-दीवाळी गाऊं

स्यात्

कोई ग्राहक आवै

जो, म्हारी बाळद सूं

सौदो ले जावै

बोझ्यां मरता बळदां ने

हळको कर जावै।

स्रोत
  • पोथी : दरद डूँगरा : दरद समँदरा ,
  • सिरजक : नन्दकिशोर चतुर्वेदी ,
  • प्रकाशक : ज्ञान प्रकाशन मंदिर ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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