दूध देंवती भैस्यां,
जीमै खळ अ’र छाछ।
कदै कदास
उठा लेवै लात
चाढलै ऊंचो
सिगळो दूध थणा मै पाछो
क्यूं कै जाणै
भैस्यां
उणरो चारो,खळ
अवै मिनख शुरू
कर दियो चरणों
भैस्यां बोलण नै बोले
कदै कदास
पण जियां तियां दूध पूरो तोलै
भैंस रा टरड़का गलरका
एकसा दिखतां थकां भी
न्यारा न्यारा हुवै
भैंस विगसाव योजनावां
बणै सदीव रोही रै रिवाज।
भैस्यां रां रंग
अनेकूं काळा पीळा धोळा
पर गुवाळियो लागै एक रंगो
आपा नै
क्यूं कै बो योजनावां नै
रंगणों जाणै भैस्यां नीं
बै तो खाळी टरड़का करणो जाणै
भूखी हुया ई दूध स्यूं नटै।