गुमसुम सी रेवै है मां

बापू रै जायां पछै!

सूरज उगण सूं पैलां'इज नहा'र

ओढ़ लेवै है

हळके रंग री ओढ़णी

अर

लगा लेवै आपरै

सूनै माथै पर

गंभीरता री बिंदी।

सींवती रेवै है मां..आखै दिन

औरां खातर रंगील कपड़ा

आंगण मांय अेकली बैठ'र।

कदी कदास ही मुळकै है मां

म्हारै साम्ही देख'र

अेक अणचांवती सी मुळक रै साथै

कै..कदास पिछाण ना लेवै

म्हारो छोटो काळजो..

उणा रा वै गैरा... दुख।

मां… म्हूं हूग्यो हुं अब मोटो

बखत सूं पैलां ही'इज

म्है गूंथुला थारा वै अधुरा रैयोडा़ सपना

निभाऊंलो म्है बेटो होवणै रो फरज

नीं आवण देउं अब थारी आँख्यां मांय आँसू।

मां म्है ल्याउं लो सगळी खुशियां

थारै इण चेहरै माथै

म्है सजाऊंलो...थारै

आंचळ मांय रंगील तारा।

मां...थूं म्हारै सिर ऊपर

बस थारो हाथ राखजै॥

स्रोत
  • सिरजक : राजदीप सिंह इन्दा ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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