तिरती सूनेड़ में

सांस लेवती भोम

अब नीं धूजैली

घण अर हथोड़ा सूं

बुझतै खीरां साथै

मरोड़ खावतौ अतीत

अजे खंखारै

बिखर्योड़ी राख

ढह्योड़ौ चूल्हौ

अब नीं आवैला

गाडिया लुहार

फेरूं पाछा इण गांव में

रूपल दादो

आज भी याद करै

गंडासै अर दांतली री पांण नै

मोरू बाई गावतौ

आज भी झमकी रौ मीठौ सुर

रात रै सरणाटै में

नस्तर-सो चुभै

पण ईंया छूटै

जलमभोम

अर घरां सूं

निकळ जावै लोग

जलमभोम

जिणरै वास्तै मिनख

सपनां अंवेरै

सीस देवण री

सौगन खावै अर

लारै-लारै

रैवती जावै

अेक ठौड़ री पौध

लागै दूजी ठौड़

दूजी जगां री पौध

खोजै तीजी ठौड़

ईंया बसै गांव अर उजड़ै सैर

गड़मच गाडी अर टाबर-टोळी रै साथै

भागतौ रैवै मिनख

लैरां-लैर

अेक कायदो है

जलमभोम रौ

जिकौ मुलक अर

दुनिया नै रचै

पण अब नीं आवैला

गाडिया लुहार

फेरूं पाछा इण गांव में।

स्रोत
  • पोथी : जातरा अर पड़ाव ,
  • सिरजक : गोरधनसिंह शेखावत ,
  • संपादक : नंद भारद्वाज ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी ,
  • संस्करण : प्रथम
जुड़्योड़ा विसै