(अेक)

धरा तपै
आखै उन्दाळै
जद पंघळतौ आभा पै टंग्यां
बदळां को काळज्यौ
धरा नै
आभा का हेत को पतौ देती
झरमर-झरमर बरखा
पैली पाती
मिळी नै कै मोरियो
पसार लेतो अपणा पांखड़ा
यां दिनां
मोरियो बण जातौ दुभासी
बौपारी
धरा अर आभा कै बीचै
करतौ बातां बौपार।

(दो)


जतनौ गाजै
आभा पै बादळ
उतनौ बैठतौ काळज्यौ
धरा को संझ्या को सीळो
बायरो उडातौ सूखा पानड़ा
धरा कर रही होवै जांणै
मिलण-सिणगार
दिन उग्यां
धरा की देही में दिखी जै सीम
वां आभा का हेत की छी।

(तीन)


बादळ जद
गरजै-बरसै
धरा की देही पै रमती चींटियां
की लमदेङ
आभा पीव को
मिळतौ जद अमरत परस
धरा की कूख मं फूट आती
दो कूंपळ।

(च्यार)


बरखा कै दिनां
हरियळ दुसालौ ओढ़ धरा देती
आभा नै नेह को नूंतौ
रूसणो बादळ
उतरतै आसोज तांई न्हं पूगावै
जद नूंतौ नेह को
आभौ बी
आसाढ़ में खोलै छै
बरखा का पट
पैली बरखा की पाती
खुली न्हं कै
आभा की सांसां मं घुळ जाती
धरा की सौरम।
स्रोत
  • पोथी : बिणजारो 2016 ,
  • सिरजक : ओम नागर ,
  • संपादक : नागराज शर्मा ,
  • प्रकाशक : बिणजारो प्रकाशन पिलानी
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