बन्दगोभी दिखावै
बारला पानड़ा जिका बध्या
इसा जाडा जाणै जूतै रो नुंवो गांठ्योड़ो तळो हुवै,
भोटो जाणै हेला कर सोगनां खाई हुवै,
इसी करड़ी जाणै डाकियै री वरदी हुवै,
बींरी नसां जाणै रस्सियां
किणसूं फूलतो पाल झलै।
हीणै भाग रै खिलाफ
पूरै जोर सूं उठती आंधी रै खिलाफ,
तकड़ी ढालां सूं हर दरवाजै री रिच्छा करण,
अकड़्योड़ा अूभा बै उडीकै
अनाड़ी सूरवीरां जबरां नैं।
पण रेसमी अर कंवळो
है काळजो जिको बै रुखाळै।
बीं काळजै कानी झांकतां
जिका बरफ जिसा धोळा
हूं पाछी मुड़ी अर तोड़ी
बा बारली पानड़ी।
जाणै आंख री पलक हुवै
मैं जोया आंसूं बैवता,
म्हारी बांवां घणै दुखड़ै री ओस सूं भिजोवतां।
समदर रो किनारो—अर अनोखा
अचंभा मनैं मिल्या
ज्यूं-ज्यूं पान माथै पान
इण रा ढकणा खोल्या।
बिन रुखाळ्यो, बो माथो,
जद कड़वा आंसू नाखण लाग्यो,
म्हारै हाथ री हथाळी में लुकतो
इण रै डर सूं।