आंख्यां खोल देखलौ बीरा, बाड़ खेत नै खावै।
बगत आयग्यौ माड़ौ भाया, गिरजड़िया गरणावै॥
बगत पड़यां नर ऊंचौ होवै, बगत पड़्यां नीचौ गिर जावै।
फळ तरवर रै माथै रेवै, बगत पड़ै धर पर खिर जावै॥
बगत सूं आ रात बणै है, बगत सूं ओ दिवस बण जावै।
अमन चैन सूं रहतां रहतां, देख बगत सूं जुद्ध ठण जावै॥
आणंद कर देवै बगत ओ, बगत ही ओ करदै मंगळ।
भूंडा बगत आवतां देखौ, तूर्ण करावै झटपट तंडळ॥
धन ही देवै बगत मिनख नै, बगत देख कंगाल बणावै।
बगत पड़ै झूंपी रेवणियौ, सजड़ सांतरौ मै’ल चिणावै॥
चौमासै री बगत देखलौ, हरियाली छा जावै धरती।
लूवां घणी उनाळै चालै, कैड़ी कोजी धूंकर करती॥
बगत पड़्यां पूछै नीं कोई, बगत पड़यां पूछ हो जावै।
बगत जड़ां सूं बीज गमादै, बगत ही बौ बीज बौ जावै॥
बगत सूं ही आज बणै ओ, ‘काल’ ‘परसूं’ ही बगत बणावै।
नूंवौ जूनौ बगत बणावै, सिर पर विपदा बगत तणावै॥
बगत बणावै दिन नै देखौ, रातां नै भो बगत बणावै।
पखवाड़ौ ओ बणै बगत सूं, मास बरस ही बगत बणावै॥
जुग-निरमांण बगत सूं होवै, बगत देख कळपांत करावै।
बगत मिनख नै हरख करावै, बगत मिनख नै सांत रुलावै॥
जलम देखलौ होय बगत सूं, ओ चावै तो मार सुलावै।
परण मरण इणसूं ही होवै, वरण घरण नै बगत बुलावै॥
इच्छा पूरी होय बगत सूं, नींतर बा रै जाय अधूरी।
हाकम बण्यौ बगत सूं देखौ, बगत ही करवावै हजूरी॥
बड़ौ पबळ है बगत जगत में, बगत पाण बण जावै राजा।
झुकनै करै सलाम सकळ जण, बाजण लागै नौपत बाजा॥
नांम करावै बगत मिनख रौ, बगत मिनख बदनांम करावै।
मांन करावै बगत मिनख रौ, बगत मिनख अपमांन करावै॥
जोबण लावै बगत सरीरां, देख बुढापौ बगत बुलावै।
बगत मींच नै हेलौ देवै, झटपट आतां पाण सुलावै॥
भौं बांकी जै करै बगत तौ, सजड़ मै’ळ री नींव हिलादै।
दीठ फिरै तौ मिनख जमारौ, पळ भर मांही धूळ मिलादै॥
बगत हमेस चालतौ रेवै, रुक पावै नीं औ तौ पळ भर।
बगत हाथ सूं निकळ जाय तौ, पछताणौ रेवै जीवण भर॥